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Saturday, 4 August 2012


हर   सिम्त   अब   तो   तन्हाईयों का मौसम है,
दर्द  जो  तुमने   दिये  हैं    वो  ही  हमराज  मेरे!
छलका  करती  हैं  आँखें  तो  कभी  छलके हँसी,
टूटे  सपनों का  पता देते  हैं   वो  सब  आज मेरे!
अब तो कुछ भी नहीं  मेरे दामन  में खामोशी है,
गीत  के बोल  थे वो  ही  साज  और आवाज मेरे!
एक मुलाकात में ही बना लेता था अपना सबको,
हुआ करते थे  कभी  मिलने  के  ऐसे अंदाज मेरे!

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