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Thursday, 26 July 2012


दिल में एक दर्द-सा अक्सर उभरता क्यों है
जो तुझे भूल गया याद तू उसे करता क्यों है
मुझे मालूम है उससे नहीं अब रिश्ता कोई
हवा में चेहरा फिर उसका यूँ तिरता क्यों है
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ये बुरा दौर है इसमें किसी से क्या शिकवा
आग लगती है तो खुद अपने पत्ते हवा देते हैं
मर्ज क्या खाक ठीक होगा मेरा ऐ ’मुकेश’
जख्म देने वाले ही जब मुझको दवा देते हैं
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2 comments:

  1. बेहद गंभीर लेखनी ....

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  2. बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी रचना ।

    जितेन्द्र माथुर

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