हम अकेले कुछ नहीं कर सकते
कितनी ही उपलब्धियाँ
जुड जाए हमारे नाम के साथ
पर सच तो यही है
कि उनमें होता है
ना जाने कितनों का ही
महत्त्वपूर्ण योगदान
जिनके नाम कभी नहीं लिए जाते
और शायद हम भी नहीं करते
कभी उन पर ग़ौर
और बिसरा देते हैं उन्हें
पर यदि गहरे में सोचें
तो पाएंगे कि एक छोटी से छोटी उपलब्धि में
छिपे होते हैं अनेकानेक नाम
कितने ही परिचितों/अपरिचितों के
जो जाने/अनजाने जुड़ जाते हैं
हमारे उस उपक्रम में
अकेले कुछ नहीं होता!
हम अकेले कुछ नहीं कर सकते!!
आज आपके ब्लॉग पर आ कर बहुत अच्छा लगा. आप सच्चे साहित्य साधक हैं और अपने योगदान से साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं. मेरी बधाई स्वीकारें. उपरोक्त रचना सत्य को स्थापित करती है सच है हम अकेले कुछ भी नहीं कर सकते...कुछ भी नहीं....वाह.
ReplyDeleteनीरज
आपने जो हौंसला अफजाई की है उसके लिए तहे-दिल से आभार!
Deleteआशा है आपका स्नेह यूँ ही आगे भी मिलता रहेगा!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
आदरणीया/ आदरणीय सारिका मुकेश जी ...सच को बयाँ करती और अन्तर्निहित तथ्यों को उजागर करती सुन्दर रचना कहा गया है की अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता ...योगदान बहुत जरुरी है रहता भी है हम उसे नीव में भले ही दबा छोड़ देते हैं लेकिन भवन का आधार वही है ....
ReplyDeleteजय श्री राधे
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
आदरणीया/ आदरणीय सारिका मुकेश जी ...सच को बयाँ करती और अन्तर्निहित तथ्यों को उजागर करती सुन्दर रचना कहा गया है की अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता ...योगदान बहुत जरुरी है रहता भी है हम उसे नीव में भले ही दबा छोड़ देते हैं लेकिन भवन का आधार वही है ....
ReplyDeleteजय श्री राधे
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
सुंदर विचार....फिर भी बहुत कुछ है जिसमें हम चाहकर भी किसी को शामिल नहीं कर सकते..जैसे स्वप्न में...साधना में...
ReplyDeleteजीवन के सत्य को कहती अच्छी रचना .... वाकई हम अकेले कुछ नहीं करते
ReplyDeleteजिंदगी की शुरुआत दो से होती है...जीवन का निर्वाह दूसरों के सहारे होता है...कुछ अनुभव एकाकी होते हैं,जिन्हें बांटा नहीं जा सकता; लेकिन जीवनानुभूतियों में बहुत लोगों का साथ रहता है। एक बड़े सार्थक अनुभव को बांटने के लिए धन्यवाद!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सच्चाई है....
ReplyDeleteसाथी हाथ बढ़ाना.....एक अकेला थक जाएगा...
सादर
अनु
कितनी सच्ची बात कही है आपने ..हम कुछ भी करें उसमें न जाने कितनो लोगों का योगदान होता है.जो प्रत्यक्ष रूप से भले ही न दिखाई दे परन्तु उनमें से किसी एक के भी बिना व असंभव होता है.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना.
बहुत सही कह रहीं हैं आप.
ReplyDeleteसुन्दर प्रेरक प्रस्तुति के लिए आभार.