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Tuesday, 17 April 2012

नियति



अण्डे का कवच फोड़
गुलगुले माँस के लोथडे़ से
गर्दन निकाल
अभी मुश्किल से
एक दृष्टि भर
देखना चाहा ही था
उसने प्रकृति को
तभी कहीं से
आई एक चील
और ले गई उसे
अपनी चोंच में उठाकर
सोचती हूँ शायद
यही थी उसकी नियति
आँखें खुलने के साथ ही
लिखी थी मृत्यु

1 comment:

  1. जब कोई आमलेट खाता है ... तब भी मैं कुछ ऐसा ही सोचता हूँ.

    अत्यंत संवेदनापूर्ण भाव.... साधु.

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