सदियों से
चाँद पर
चरखा चला
रही है एक बुढिया
कातकर डाल
देती है
सूत के
ढेर ही ढेर
जिससे बने
कुर्ते को पहनकर दिन में
सूरज घूमता
है आकाश में नेता बनकर
चाँदनी की
श्वेत चादर ओढ प्रेमी बन
चंद्रमा लगाता
है पूरी रात चक्कर
और जिससे
बनी रजाई में
तारे छिपे
पडे रहते हैं सर्दी से बचकर
आकाश में
बिखडे पडे हैं रूईं के फोहे
यहाँ-वहाँ बादल
बनकर
और चुपचाप
चाँद पर
सूत कातती
चली जाती
है बुढिया
फिर भी
ना जाने
क्या बात है
कि चाँद
पर सूत कातती
उस बुढिया
की
खबर नहीं
लाते
चाँद पर
जाने वाले
सारिका जी अभिवादन बहुत ही खूबसूरत कल्पना और अहसास ..बहुत सुन्दर मन को छू गया ..ऐसा ही होता है जो दिखता है सब होता नहीं तो क्या करें चाँद पर जाने वाले ??
ReplyDeleteभ्रमर ५