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Tuesday, 8 November 2011

चाँद पर सूत कातती बुढिया


      
सदियों से चाँद पर
चरखा चला रही है एक बुढिया
कातकर डाल देती है
सूत के ढेर ही ढेर
जिससे बने कुर्ते को पहनकर दिन में
सूरज घूमता है आकाश में नेता बनकर
चाँदनी की श्वेत चादर ओढ प्रेमी बन
चंद्रमा लगाता है पूरी रात चक्कर
और जिससे बनी रजाई में
तारे छिपे पडे रहते हैं सर्दी से बचकर
आकाश में बिखडे पडे हैं रूईं के फोहे
यहाँ-वहाँ  बादल बनकर
और चुपचाप
चाँद पर सूत कातती
चली जाती है बुढिया             

फिर भी
ना जाने क्या बात है
कि चाँद पर सूत कातती
उस बुढिया की
खबर नहीं लाते
चाँद पर जाने वाले                                           

1 comment:

  1. सारिका जी अभिवादन बहुत ही खूबसूरत कल्पना और अहसास ..बहुत सुन्दर मन को छू गया ..ऐसा ही होता है जो दिखता है सब होता नहीं तो क्या करें चाँद पर जाने वाले ??
    भ्रमर ५

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