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Tuesday, 8 November 2011

जिंदगी की गाडी



जिंदगी की गाडी
जीवन भर
पटरियां ही बदलती रही
ना जाने कितनी ही
लाल बत्तियों पर रूकी
और फिर हरी बत्ती देख
चल पडी...
चलती रही...
लगातार बढती रही
गंतव्य की तलाश में
हाय कितनी दूर था वो
लगता था जो पास में                                             

1 comment:

  1. हाय कितनी दूर था वो लगता था जो पास में
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !!

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