तुम्हें मालूम
नहीं शायद
पर हक़ीक़त
यह है
कि मैं
कँवारी हूँ
और रहूँगी
कँवारी ही
भले ही
भोग लो
तुम मेरा
ज़िस्म
पर नहीं
छीन सकते
मेरा कँवारापन
क्योंकि कँवारापन
ज़िस्म का
नहीं
मन का
होता है
वाह! बहुत ही सुन्दर भाव हैं आपके,सारिका जी.
ReplyDeleteमन अंदर से पवित्र हो तो उस पवित्रता को कौन छीन
सकता है जी.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.