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Saturday, 5 November 2011

मैं जननी हूँ


अपना सब कुछ
उड़ेल दिया
तुम पर
पर मैं
रिक्त नहीं हुई
बल्कि
मैं खुद को
भरा-भरा सा
महसूस करती हूँ
क्या करूँ
मेरी प्रकृति ही
ऐसी है
कि खाली को
भरकर ही
मैं तृप्त होती हूँ
मैं जननी हूँ
मैं देवों से भी
बड़ी होती हूँ ∙ 

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर लिखा है...आपको शुभकामनाएं
    और मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साह बढ़ाने के लिए आपका धन्यवाद
    http://theparulsworld.blogspot.in

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