अपना
सब कुछ
उड़ेल
दिया
तुम
पर
पर
मैं
रिक्त
नहीं हुई
बल्कि
मैं खुद को
भरा-भरा सा
महसूस करती हूँ
क्या करूँ
मेरी
प्रकृति ही
ऐसी
है
कि
खाली को
भरकर
ही
मैं
तृप्त होती हूँ
मैं
जननी हूँ
मैं
देवों से भी
बड़ी
होती हूँ ∙
बहुत सुन्दर लिखा है...आपको शुभकामनाएं
ReplyDeleteऔर मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साह बढ़ाने के लिए आपका धन्यवाद
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