हमारे लिए ऊर्जा के परम-स्रोत...

Saturday, 5 November 2011

गरीबी


लाख गिड़गिड़ाए
वो तुम्हें लाख मनाए
पर तुम
जरा-सा भी
विचलित मत होना
तुम जैसे ही
विचलित हुए
फिर कहाँ कोई
कसर रह जाती है
जरा-सी
जगह मिलते ही
गरीबी आराम से
ज़िंदगी की
बर्थ पर
पूरी तरह से
पसर जाती है ∙

No comments:

Post a Comment

आपकी प्रतिक्रिया हमारा उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन करेगी...