मेरे पिता जी ने
कभी अपनी जवानी में
चार पेड़ लगाए थे आम के
जो वक़्त आने पर खूब फूले-फले
खूब खेले हम सारे बच्चे
और बड़े हुए उनकी छाँव तले
कई बरस तक
पूरे परिवार ने खूब आम खाए
और फिर एक दिन जब
पिताजी चल बसे
तो उनके दाह-संस्कार में भी
दो पेड़ उन्हीं में से काम आए
जलती हुई चिता के समक्ष खड़ा
मैं सोच रहा था
ये पेड़ भी थे मेरे सहोदर
जो आज शामिल हुए हैं मेरे साथ
मेरे पिता जी के अंतिम संस्कार पर
घर लौटते वक़्त सोच रहा था
मैं भी जल्दी ही लगाऊँगा कुछ पेड़
जो काम आएँगे एक दिन
मेरी मृत्यु पर देर-सबेर
(28.07.2013, 4:50 P.M.)
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