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Wednesday, 25 April 2012

कैसा चलन?




फैला ज़हर
सांप्रदायिकता का
नेता ले मौज़


भूखे ही पेट 
दिखाता खुशहाली
ओ चित्रकार


रोज बेधती 
पुरूषों की दृष्टि
नारी तन को


भूखे ही पेट 
बन गया त्यौहार
कैसी किस्मत


पाँच पाँडव
औ’ अकेली द्रौपदी
करती तृप्त

3 comments:

  1. Bahut achha!! sabhi kavitaye achhi hain Bhaiya n Bhabhi!

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  2. बहुत सुंदर हायेकु....

    अच्छा लगा आप दो लोगों का मिलकर ब्लॉग बनाना.....
    सादर

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