होता था
संवाद कभी
जो हममें
कालांतर में
कितना कुछ सहकर
ये जाना हमने
सुख बनकर के
आया था वो
दुःख हमको देने
काश
अगर ये हमने
तभी समय से
चेता होता
दुःख ने कहाँ
फिर हमको
यूँ घेरा होता?
.
ReplyDeleteआदरणीया सारिका जी ,
प्रणाम !
सच है, समय पर चेतने पर अवांछित परिस्थितियों से बचा जा सकना संभव है …
सुंदर कविता के लिए आभार !
शुभकामनाओं सहित …