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Thursday, 24 November 2011

अज्ञानता



बाँटने थे हमें
सुख-दुःख
अंतर्मन की
कोमल भावनाएं
शुभकामनाएं और अनंत प्रेम
पर हम
बँटवारा करने में लग गए
जमीन पानी आकाश हवा
और
लड़ते रहे
उन्हीं तत्वों के लिए
जो अंततः
साबित हुए मूल्यहीन                                         

6 comments:

  1. इसी अज्ञानता में जीता रहता है इंसान .. बहुत सटीक प्रस्तुति ,

    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार .



    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  2. bahut achchha!!

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  3. बहुत बढिया!! आपको बहुत-बहुत साधुवाद!!
    अंजली वासवानी

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  4. अति सुंदर!अतिशोभन!!
    बहुत ही उत्तम भावाभिव्यक्ति!
    बहुत-बहुत बधाई!!
    कोई पुस्तक प्रकाशित हुई है तो बताएं!
    सादर/सप्रेम
    ऋतंभरा जैन

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  5. कम शब्दों में सारगर्भित बात कहने की कला देख कर प्रसन्नता हुई।

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  6. मूल्य के पीछे दौड़ने वाले को हीन ही होना पड़ेगा ! बहुत ही सुन्दर सार्थक कविता !

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