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Saturday 24 August 2013

जिंदगी एक किताब



अपने मधुर गृह में आज़
स्मृत करता मैं विगत दिन
कहाँ चले गए
वो पल-छिन
दीवारों पर हैं अब
वो स्मृतियाँ शेष
ताकता रहता मैं
जिन्हें अक्सर अनिमेष

सुनते हुए मैं संगीत
करता याद पुराने मीत
पुराने दिन, पुरानी रात
पुराने पल, पुरानी बात
हो चुके अब वो पुराने गीत
गा चुका जिन्हें वक़्त कभी का
एक गुज़रा हिस्सा मेरी जिंदगी का
वो सब हैं अब एक फ़कत इतिहास
समूची जिंदगी बनती यूँ ही इतिहास
और फिर खो जाती ये किताब
बनने को फिर से लाज़वाब. 

2 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति...
    हर किसी के दिल की बात कह दी आपने बहुत ख़ूबसूरती के साथ...


    ~सादर!!!

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  2. सही कहा आपने, जीवन एक किताब ही तो है, सुंदर भाव.

    रामराम.

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