कोई काम ना आएगा, झूँठी
सबकी प्रीत
भावनाओं का मूल्य नहीं, सब
स्वार्थ के मीत
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कहाँ दरिंदे कर सकें, अब
मानवता की होड़
बलात्कार, हत्याओं
का, साम्राज्य है चारों ओर
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अब रिश्तों में टूट रहे, देखो कैसे विश्वाश
ना जाने कैसी हो गई, ये
हवस की प्यास
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जमाना ही उल्ट गया है, बहुत ही दुखद घटनाऎं घट रही है.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए धन्यवाद।