आज भी कई
होते चीरहरण
कहाँ हो कृष्ण
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रही चीखती
क्यों नहीं कोई आया
उसे बचाने
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निर्ममता से
तार-तार इज्ज़त
करें वहशी
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हुआ वहशी
खो दी इंसानियत
क्यों आदमी ने
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तमाम भय
असुरक्षित हम
कैसा विकास
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कैसी ये व्यथा
क्यों रहे जानवर
पढ़-लिख के
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वामा होने की
कितनी ही दामिनी
भोगतीं सज़ा
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बेबस नारी
अजीब-सा माहौल
कैसा मखौल
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ओ रे मानव
कई युग बदले
हुआ ना सभ्य
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सच में! बहुत ही दुखद.... :(
ReplyDelete~सादर!!!