जीवन की स्याह रातों में
पूरी-पूरी रात जाग
झोंक दिया खुद को
पूरी तरह से,
खड़े करती रही
आकांक्षाओं के महल
और बुनती रही सुनहरे ख्वाब
चुपचाप सह लिया सब कुछ
जो भी कहा सबने अच्छा-खराब
पर यह क्या
कि एकाएक ही
वक्त की आँधी में
बिखर गया सब कुछ
तिनका-तिनका होकर
और लगा ऐसे
जैसे मैं खींचती रही
ता-उम्र
पानी पर लकीरें ∙
कभी कभी सब कुछ अधूरा सा लगता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सादर !
पानी की लकीरें---
ReplyDeleteसहजता से कही जीवन की गहरी बात
सुंदर अनुभूति
बधाई
बहुत गहन अभिव्यक्ति
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