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Tuesday, 8 November 2011

आत्मविश्वाश



तमाम आँधी
और तूफानों में भी
खडा रहूँगा मैं
अपनी जगह पर
दृढता से 
वृक्ष बनकर
तुम निश्चिंत होकर
लिपट जाओ मुझसे
एक लता बनकर                                              

1 comment:






  1. आदरणीया सारिका मुकेश जी
    सस्नेहाभिवादन !

    तमाम आँधी
    और तूफानों में भी
    खडा रहूँगा मैं
    अपनी जगह पर
    दृढता से
    वृक्ष बनकर
    तुम निश्चिंत होकर
    लिपट जाओ मुझसे
    एक लता बनकर

    बहुत सुंदर कविता है … आभार !

    # आपकी बहुत सारी कविताएं पढ़ीं …
    बच्चियों वाली कविताएं बहुत पसंद आईं , साक्षरता वाली और भी अच्छी !
    बच्ची पशुओं को चराने जाती है … और पढ़ने में लीन हो जाती है …
    :)
    तमाम कविताओं के लिए बधाई और साधुवाद !


    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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