स्टेशन के बाहर निकलते ही
शुरू हो जाता है शहर
चीं-पौं, चीं-पौं और
चिल्लाहट के स्वर
ऑटो, टैम्पो, स्कूटर
उगलते हुए ज़हर
रिक्शा, पैदल, साइकिल सवार
मोटरों की लंबी-लंबी कतार
हर तरफ मशीन ही मशीन
चेहरे सूखे, मुरझाए, ताज़ा और हसीन
यहाँ से वहाँ भागते हड्डियों के ढाँचे
बीडी फूँकते दमे के मरीज
पुरूष, स्त्रियां और उनके संग खरीज
शहर कोई भी हो
दृश्य यही नज़र आता है
स्टेशन के बाहर निकलते ही
शहर शुरू हो जाता है
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