किसी
को अपना कहना
क्यों
हो गया
किसी
दुः-स्वप्न के जैसा
कहाँ
चले गये
वो
छायादार वृक्ष
जिनके
नीचे
हम
सुस्ताते थे
कहाँ
चले गये वो पुष्प
जो
ग़म में भी मुस्काते थे
कितना
कुछ
बदल
गया है
इस
आधुनिकता के दौर में
जहाँ-तहाँ
भागा
फिरता है आदमी
चैन
नहीं आता
किसी
ठौर में
कभी-कभी सोचती हूँ
आदमी
को क्या हो गया
फिर
लगता है कि
सब मशीन ही मशीन हैं
यहाँ
आदमी
तो कहीं खो गया∙
सुन्दर प्रस्तुति..।
ReplyDeleteसाझा करने के लिए आभार...!
आपका हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर,
सारिका मुकेश
वर्तमान का सच,सुंदर अनुभूति
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
सादर
आग्रह है- पापा ---------