पत्र की महिमा
एकाएक ही पुरानी डायरी में
रखा मिल गया एक पत्र
और ताजा हो उठी
एक गुजरे जमाने की याद
कितना अच्छा लगता था
जब हम करते थे
डॉकिये की प्रतीक्षा
और भर उठते थे खुशी से
जब डॉकिया लाता था पत्र
हमारे प्रियजनों का
तुरंत होती थी उत्सुकता देखने की
कि कहाँ से आया है
और किसका है ये पत्र
और फिर अगले ही पल
खोलकर बैठ जाते थे पढने
और फिर पढते थे
एक बार, दो बार...
ना जाने कितनी ही बार
कितना सुखद लगता था पत्र पढना
उसमें एक अनजाना सा अपनापन था
आज भी जब पुराने पत्र
रखे मिल जाते हैं
तो उन्हें पढने में
होती है एक सुखद अनुभूति
और जो आपको देती है आलंबन
जब कभी भी तलाश में हों
आप किसी सहारे के
किसी मानसिक संबल के
पत्र की यह विशेषता है कि
पत्र लिखा तो एक बार जाता है
पर उसे कई बार
पढने की स्वतंत्रता है
और यह सुविधा भी
कि रख लो उसे धरोहर के रूप में
अपने पास सदा-सदा के लिये
और पढ लो किसी भी पल
और कहीं भी
जब कभी भी मन हो उदास
अब नहीं आता डाँकिया
बंद हो गए हैं अब पत्र
अब तो सारा काम
चल जाता है फोन से
ई-मेल से, एस.एम.एस से
पर पत्रों की आत्मीयता और अपनापन
ये सब कभी नहीं ले सकते.
(कविता संग्रह 'खिल उठे पलाश' से साभार)
बिल्कुल सही फ़रमाया आपने सारिका जी!
ReplyDeleteहमने तो आज भी सारे पत्र सॅंजो कर रक्खे हुए हैं... :-)
~सादर!!!
फूल की खुश्बू से महकते हैं पुराने पत्र...हमारे पास भी सैंकड़ो रखे हैं...इस हिसाब से आप भी हमख्याल निकलीं...
Deleteप्रतिक्रिया के लिए आभार...नवरात्रे की शुभकामनाएँ!
सादर/सप्रेम