कैसा विचित्र संसार ये कैसी रीति विचित्र
पैसा ही अब माता-पिता पैसा संबंधी मित्र
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विपदा दूजे की हमें अब तनिक न करे व्याकुल
खुद की एक खरोंच से हम हो जाते आकुल
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मतलब अपना साधकर खुद में हो गए लीन
अब तो वो हमको लगें बंदर गाँधी के तीन
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बहुत खूब
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