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Friday, 6 September 2013

पिछले दिनों समाचारों में धार्मिक आस्था और विश्वाश को एक तथाकथित धर्म गुरु द्वारा छलनी करती खबर से सब देशवासी हतप्रभ रह गए; उसी को विषय बनाया है हमने इन हाइकुओं में:

वाह रे संत
आस्था के नाम पर
ये धोखाधड़ी
   ***
अक्सर ले के
बचे फिरते दुष्ट
धर्म की ओट
   ***
कैसा ये काम
क्यों किया बदनाम
राम का नाम
   ***
वाह रे वाह
संत की खाल ओढ़े
छिपा भेड़िया
   ***
लूटे इज़्ज़त
बनता दादा नाना
पुकारे बेटी
   ***
देता था मुक्ति
अब ना काम आई
क्यों कोई युक्ति
   ***
टूटी अकड़
चढ़ा पुलिस हत्थे
बोलती बंद
   ***
सच ही कहा
भरने पर फूटे
पाप का घड़ा
   ***
करे जो बुरा
उसका बुरा अंत
ये कहें संत

   ***

2 comments:

  1. आज का समय सोच समझ के चलने का है ... अंधभक्ति जरूरी नहीं ... गुरु की परीक्षा तो विवेकानंद ने भी ली थी ...

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