सदियों से चली
आ रही
भारत की अमिट
पहचान
चिरकालीन
संस्कृति
और नैतिक
मूल्यों की कब्र पर
खिल रहे हैं
आज
बेहतर आर्थिक
स्थिति
और प्रगति के
फूल
सामाजिकता की
बलि देकर
कर रहे हैं अब
हम
वैज्ञानिक युग
में प्रवेश
फेसबुक,
ट्वीटर,टूटू पर
ढूँढते हैं हम
अपनापन
सगे रिश्तों
में नहीं बची
अब कहीं भी
संवेदना शेष.
सही है जब आपसी रिश्तों में नही ढूंढ पायेंगे तो शोसल साईटस मे क्या पा लेंगे? बहुत सटीक.
ReplyDeleteरामराम.
दो और दो पांच का खेल, ताऊ, रामप्यारी और सतीश सक्सेना के बीच
ब्लॉग पर आने और अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आपको हार्दिक आभार ताऊजी!!
Deleteथोथी पगति का नगाडा इतनी तेज़ी से बज रहा है की हर कोई उस में बेसुध हो रहा है ... जकडा जा रहा है भौतिक वाद में ...
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