चार बरस की आशी
और पाँच वर्षीय काशी में
आपस में बडा है मेल
वो एक साथ पढते हैं
और एक साथ खेलते हैं खेल
आशी खेलती है अपने किचन में
खाना, चाय, कॉफी बनाने का खेल
काशी खेलता है फुटबाल, क्रिकेट
बैडमिंटन और पुलिस-जेल
आशी रचाती है अपनी गुडिया का विवाह
काशी बनता है दूल्हे का पिता
मैंने पाया है अक्सर
उनके बीच काफी है विषमता
काशी है थोडा कठोर
और आशी में छिपी है ममता
काशी में है वर्चस्व दिखाने की भावना
आशी में है सर्वस्व लुटाने की भावना
क्या यह सच नहीं है
कि ईश्वर लडकी में बचपन से ही
सहिष्णुता और ममता जगा देता है
लडका खुद को अहम् मानता है
और सदा अपना पुरूषत्व दिखाता है
सोचती हूँ
लडका और लडकी
बचपन से ही रहे बेमेल
जैसे साथ-साथ चलते हुए भी
एक दूसरे से कभी ना मिलने वाली
दो समानांतर रेल
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21 -07-2013) के चर्चा मंच -1313 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए शुक्रिया!
यह शायद उस घुट्टी की वजह से है जो बचपन से पिलाई जाती रही है दोनों आशी और काशी को.....इस समाज को ....और उसीके अनुरूप ढालती रही है ...पर अब हमें ही बदलाव लाना होगा ...है न...!!!
ReplyDeleteप्रशंसनीय रचना -
ReplyDeleteसाझा करने के लिए शुक्रिया !
शब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)