आज मैं सुप्रसिद्ध कवि और व्यंग्यकार श्री रवींद्रनाथ त्यागी की
कविताएँ पढ़ रही थी, उनकी एक कविता “उठते कदम” की यह पंक्तियाँ आपसे साझा करना चाहती हूँ; इसी कामना के साथ कि आप अपने
कार्यक्षेत्र में सदैव इन पंक्तियों को ध्यान में रख हौंसले से बढ़ते रहें:
...ले जाएंगे किसी मंजिल पर
मेरे ये क़दम मुझको ज़रूर
यह निश्चित है
क़दम टेढ़े हों या सीधे हों
आगे ज़रूर ले जाते हैं,
कोई क़दम कभी बेकार नहीं जाता
गिरना भी क़दम उठाना है
इसी से टूटे स्वर फिर जुड़ जाते हैं
खोई लहरें फिर वापस आ जाती हैं
और मैं क़दम ब क़दम
आगे बढ़ता हूँ
प्रतिदिन, प्रतिक्षण!
गति ही जीवन है..
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