मनुष्य बन गया है पाषाण
पत्थरों में
खुद के इतिहास को
तलाशते-तलाशते
मनुष्य बन गया है
स्वयं पाषाण
दिखाई नहीं देतीं
अब उसे मानवीय संवेदनाएं
सीने में धड़कता दिल
धमनियों में दौड़ता खून
शरीर में बसे प्राण
पत्थरों में
खुद के इतिहास को
तलाशते-तलाशते
मनुष्य बन गया है
स्वयं पाषाण
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने ..आभार . बाबूजी शुभ स्वप्न किसी से कहियो मत ...[..एक लघु कथा ] साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteसही कहा आपने ...बहुत खूब
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