हमारे लिए ऊर्जा के परम-स्रोत...

Wednesday, 22 May 2013





मनुष्य बन गया है पाषाण

पत्थरों में
खुद के इतिहास को
तलाशते-तलाशते
मनुष्य बन गया है
स्वयं पाषाण
दिखाई नहीं देतीं
अब उसे मानवीय संवेदनाएं
सीने में धड़कता दिल
धमनियों में दौड़ता खून
शरीर में बसे प्राण

पत्थरों में
खुद के इतिहास को
तलाशते-तलाशते
मनुष्य बन गया है
स्वयं पाषाण 

3 comments:


  1. बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने ..आभार . बाबूजी शुभ स्वप्न किसी से कहियो मत ...[..एक लघु कथा ] साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति,आभार.

    ReplyDelete
  3. सही कहा आपने ...बहुत खूब

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया हमारा उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन करेगी...