शेष है याद
जिया हमने
जो कभी जीवन में
बनता याद
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चलती यादें
मस्तिष्क-पटल पे
चलचित्र-सी
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देतीं दस्तक
मस्तिष्क-पटल पे
गाहे-बगाहे
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सदा जीवंत
हो उठता अतीत
इन यादों में
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जब भी आई
भिगों गई अँखियाँ
मधुर यादें
***
दीवार पर
फ्रेम में टँगी हुई
मधुर-स्मृति
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कुछ न बचा
हो गया सब नष्ट
शेष है याद
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बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति .sach me yaden aakhiyan bhigo deti hain . दामिनी गैंगरेप कांड :एक राजनीतिक साजिश ? आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
ReplyDeleteस्मृति के छंद,
ReplyDeleteबन गये आपके शब्द,
हाइकू स्वच्छंद!
स्मृयों के बंडल लादे ,कहाँ-कहाँ घूम आता है मन!
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