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Saturday 27 July 2013

कभी वक़्त मिले तो



कभी वक़्त मिले
तो बैठना
कहीं एकांत में
कोलाहल से दूर
निर्जन और शांत में
फिर याद करना
वो एक-एक लम्हा
जब हम मिले थे
जीवन की डगर में
एक दूसरे से यहाँ
इस अपरिचित शहर में
और फिर
ना जाने कब
बह गये थे हम
अपनत्व की लहर में
याद करना
वो सब कुछ
बीता हुआ
जो अब तुम्हारी
स्मृति से रीता हुआ
यदि उसमें झलके
मेरी निश्छल भावना

यदि उसमें झलके
तुम्हारी समृद्धि की कामना
यदि उसमें झलके
मेरा अपनत्व

यदि उसमें झलके
मेरा प्रेम सशक्त
तो तुम उन्हें याद कर
प्रेम से चूम लेना
दो पल दो घड़ी
उनके संग झूम लेना
फिर उनका दिल से
सत्कार करना
उन्हें चूमना और
खूब प्यार करना
यदि तुमने ऐसा किया
तो मैं धन्य हो जाऊँगी
प्रत्यक्ष में तो
ना पा सकी तुम्हें
चलो अप्रत्यक्ष में ही
पा जाऊँगी ∙  

9 comments:

  1. very nice expression of feelings .

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  2. भुलीविसरी अतीत को याद दिलाती सुन्दर रचना
    latest post हमारे नेताजी
    latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु

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  3. हमारी रचना को आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु आपको हार्दिक धन्यवाद!
    सादर/सप्रेम,
    सारिका मुकेश

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  4. हमारी रचना को आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर स्थान देने हेतु आपको हार्दिक धन्यवाद!
    सादर/सप्रेम,
    सारिका मुकेश

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  5. जीवन में जो नही मिल पाता उसको इस तरह यादों में भी पाया जा सकता है, बहुत ही सुंदर भाव अभिव्यक्त हुये हैं, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (29.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (29.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .

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  8. प्रेम की पराकाष्ठा को लिखा है ... जेस्में पाना न पाना महत्त्व नहीं रखता ...
    बस जीवन की छोटी सी आकांक्षा ही पूरा जीवन बन जाती है ...

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  9. प्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति ।

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