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Thursday 8 December 2011

तुमने देखा है कभी




तुमने देखा है कभी
कोई आठ साल का 
एक दुबला-पतला 
मरियल सा लडका
भीतर को धँसी आँखें
सीने में गिनती करती हड्डियाँ
बदन पर पहने हुए मैले-कुचैले कपडे़
उनमें अलग-अलग रंगों के धागों से
की गई सीवन आकृष्ट करते हुए ध्यान
चेहरे पर जमी कई दिनों की भूख
और उसकी आँखों में चमकते
सामने की दुकान के काउंटर में रखे
ताजा महकते बंगाली रसगुल्ले ›  

2 comments:

  1. कविता में निहित चिंता और अफ़सोस स्पष्ट है।

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  2. एक विवशता...एक भूख...एक सपने को बुनती यथार्थपरक भावपूर्ण रचना के बधाई स्वीकार करें।

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