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Tuesday 8 November 2011

मैं कँवारी ही रहूँगी



तुम्हें मालूम नहीं शायद
पर हक़ीक़त यह है
कि मैं कँवारी हूँ
और रहूँगी कँवारी ही

भले ही भोग लो
तुम मेरा ज़िस्म
पर नहीं छीन सकते
मेरा कँवारापन
क्योंकि कँवारापन
ज़िस्म का नहीं
मन का होता है                                  

1 comment:

  1. वाह! बहुत ही सुन्दर भाव हैं आपके,सारिका जी.
    मन अंदर से पवित्र हो तो उस पवित्रता को कौन छीन
    सकता है जी.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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